Gazal Hindi | Best Hindi Gazal | न्यू हिंदी गजल
 

Gazal Hindi

 

अपनी यादें... Gazal Hindi

 

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गये;

जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गये;

 Gazal Hindi

मुड़-मुड़ कर देखा था जाते वक़्त रास्ते में उन्होंने;

जैसे कुछ जरुरी था, जो वो हमें बताना भूल गये;

 

वक़्त-ए-रुखसत भी रो रहा था हमारी बेबसी पर;

उनके आंसू तो वहीं रह गये, वो बाहर ही आना भूल गये।

 
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एक अजीब सी हालत है...
 
एक अजीब सी हालत हैं तेरे जाने के बाद;
भूख ही नहीं लगती खाना खाने के बाद;
 
मेरे पास 8 समोसे थे जो मैंने खा लिए;
1 तेरे आने से पहले 7 तेरे जाने के बाद;
 
नींद ही नहीं आती मुझे सोने के बाद;
नज़र कुछ नहीं आता आँखे बंद होने के बाद;
 
डॉक्टर से पूछा इसका इलाज़ दी 4 टैबलेट;
बोला खा लेना 2 जागने से पहले 2 सोने के बाद।
 
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मंजिल ...
 
पहर दिन सप्ताह महीने साल;
मत देखों मंजिल की चाह में;
 
ये देखों कि कितना चले हो;
और उसमें भी कितना भटके हो राह में;
 
यदि यह भटकाव कुछ कम हो जाए;
और तेजी ला दो चाल में;
 
तो बहुत मुमकिन है कि कामयाबी;
हांसिल हो जाए नए साल में।
 
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पत्नी बोली...
 
क्यों जी, दीपावली का सारा सामान आप लाये;
पर पटाखा एक भी न लाये;
 
मैंने कहा, तुम किस पटाखे से कम हो;
सच कहूँ तो समूचा डायनामाइट बम हो;
 
अपनी गलती हमेशा मुझ पर जड़ती हो;
सफाई में जब भी मैं कुछ कहूँ मुझ पर फट पड़ती हो।
 
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Gazal Hindi Mai

यूँ तो यारो
 
यूँ तो यारो थकान भारी है;
फिर भी ख़ुद की तलाश जारी है;
 
हम में हर इक में इक परिन्दा है;
और हर इक में इक शिकारी है;
 
लोग दुनिया में दुख से मरते हैं;
और दुख से हमारी यारी है;
 
कितने ख़ुश हैं, उन्हें कहाँ मालूम;
हमने क़स्दन ये बाज़ी हारी है;
 
दिल को बेमोल बेच आए हम;
अपनी-अपनी दुकानदारी है।
 
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तस्वीर का रुख
 
तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है;
खैरात जो देता है वही लूटता भी है;
 
ईमान को अब लेके किधर जाइयेगा आप;
बेकार है ये चीज कोई पूछता भी है;
 
बाज़ार चले आये वफ़ा भी, ख़ुलूस भी;
अब घर में बचा क्या है कोई सोचता भी है;
 
वैसे तो ज़माने के बहुत तीर खाये हैं;
पर इनमें कोई तीर है जो फूल सा भी है;
 
इस दिल ने भी फ़ितरत किसी बच्चे सी पाई है;
पहले जिसे खो दे उसे फिर ढूँढता भी है।
 
 
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बेनाम सा यह दर्द
 
बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता;
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता;
 
सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें;
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यूं नही जाता;
 
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं;
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता;
 
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा;
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूं नही जाता;
 
वो नाम जो बरसों से न चेहरा है न बदन है;
वो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यूं नही जाता;
 
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नही जाता;
बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता।
 
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तप कर गमों की आग में
 
तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम;
खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन से सने हैं हम;
 
रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए;
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम;
 
सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा;
कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम;
 
छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं;
हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम;
 
खोये किसी की याद में मदहोश है किया;
छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम।
 
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तेरे ही क़दमों में
 
तेरे ही क़दमों में मरना भी अपना जीना भी;
कि तेरा प्यार है दरिया भी और सफ़ीना भी;
 
मेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं;
मेरे लिए जो है काशी वही मदीना भी;
 
तेरी निगाह को इसकी ख़बर नहीं शायद;
कि टूट जाता है दिल-सा कोई नगीना भी;
 
बस एक दर्द की मंज़िल है और एक मैं हूँ;
कहूँ कि 'तूर'! भला क्या है मेरा जीना भी।
 
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निकले हम कहाँ से
 
निकले हम कहाँ से और किधर निकले;
हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले;
 
तु समझाया किया रो-रो के अपनी बात;
तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले;
 
बरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजार;
जब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकले;
 
अब संभले के चले 'ज़हर' और सफ़र की सोच;
ऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकले;
 
तु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होता;
पर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले।
 
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Gazal Hindi Me

चैन मिल जाए.....
 
कम नहीं मेरी ज़िन्दगी के लिए;
चैन मिल जाए दो घडी के लिए;
 
दिले-ज़ार कौन है तेरा;
क्यों तड़पता है यूं किसी के लिए;
चैन मिल जाए...
 
कितने सामान कर लिए पैदा;
इतनी छोटी सी ज़िन्दगी के लिए;
चैन मिल जाए....
 
ऐसा फ़ैयाज़ ग़म ने घेरा है;
लब तरस ही गए हंसी के लिए;
चैन मिल जाए....
 
 
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तोड़ना टूटे हुए दिल का
 
तोड़ना टूटे हुए दिल का बुरा होता है;
जिसका कोई नहीं उसका तो खुद होता है;
तोड़ना...
 
मांग कर तुमसे खुशी लूं मुझे मंज़ूर नहीं;
किसका मांगी हुई दौलत से भला होता है;
तोडना...
 
लोग नाहक किसी मजबूर को कहते हैं बुरा;
आदमी अच्छे हैं पर वक़्त बुरा होता है;
तोड़ना...
 
क्यों मुनीर अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा;
जितना तक़दीर में लिखा है अदा होता है;
तोड़ना...
 
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कोई चारा नहीं
 
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;
कोई सुनता नहीं खुदा के सिवा;
 
मुझसे क्या हो सका वफ़ा के सिवा;
मुझको मिलता भी क्या सज़ा के सिवा;
कोई...
 
बरसरे-साहिले मुकाम यहां;
कौन उभरा है नाखुदा के सिवा;
कोई...
 
दिल सभी कुछ ज़ुबान पर लाया;
इक फ़क़त अर्ज़े-मुद्दा के सिवा;
कोई...
 
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इस अहद में इलाही...
 
इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ;
छोड़ा वफ़ा को उन्ने मुरव्वत को क्या हुआ;
 
उम्मीदवार वादा-ए-दीदार मर चले;
आते ही आते यारों क़यामत को क्या हुआ;
 
बख्शिश ने मुझ को अब्र-ए-करम की किया ख़िजल;
ए चश्म-ए-जोश अश्क-ए-नदामत को क्या हुआ;
 
जाता है यार तेग़ बकफ़ ग़ैर की तरफ़;
ए कुश्ता-ए-सितम तेरी ग़ैरत को क्या हुआ।
 
 
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हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे हैं मुझे;
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे;
 
जो आँसू में कभी रात भीग जाती है;
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे;
 
मैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आँखों में;
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे;
 
मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ;
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे;
 
मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह;
ये मेरा गाँव तो पहचाना सा लगे है मुझे;
 
बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद;
हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे।
 
 
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झूठा निकला क़रार तेरा;
अब किसको है ऐतबार तेरा;
 
दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं;
देखा बस हम ने प्यार तेरा;
 
दम नाक में आ रहा था अपने;
था रात ये इंतिज़ार तेरा;
 
कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे;
मेरा क्या, इख्तियार तेरा;
 
लिपटूँ हूँ गले से आप अपने;
समझूँ कि है किनार तेरा;
 
'इंशा' से मत रूठ, खफा हो;
है बंदा जानिसार तेरा।
 
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Gazal Hindi Shayari
वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआ;
देखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआ;
 
तकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब से;
रिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआ;
 
होठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करे;
वो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआ;
 
कल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयी;
देखा था खुद ये सानिहा, लगता है जो सुना हुआ;
 
पैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयी;
जीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ।
 
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मैं खुद भी सोचता हूँ...
 
मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है;
जिसका जवाब चाहिए, वो क्या सवाल है;
 
घर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न था;
क्या मुझसे खो गया है, मुझे क्या मलाल है;
 
आसूदगी से दिल के सभी दाग धुल गए;
लेकिन वो कैसे जाए, जो शीशे में बल है;
 
बे-दस्तो-पा हू आज तो इल्जाम किसको दूँ;
कल मैंने ही बुना था, ये मेरा ही जाल है;
 
फिर कोई ख्वाब देखूं, कोई आरजू करूँ;
अब ऐ दिल-ए-तबाह, तेरा क्या ख्याल है।
 
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एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया;
वो खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया;
 
यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं;
तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया;
 
उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा;
उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया;
 
दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत;
लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया;
 
अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है;
पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया;
 
अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई;
रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया।
 
 
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तेरे कमाल की हद
 
तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा;
उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा;
 
कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम;
ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा;
 
पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा;
कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा;
 
न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब;
मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।
 
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Sad Gazal Hindi
मै यह नहीं कहता कि मेरा सर न मिलेगा;
लेकिन मेरी आँखों में तुझे डर न मिलेगा;
 
सर पर तो बिठाने को है तैयार जमाना;
लेकिन तेरे रहने को यहाँ घर न मिलेगा;
 
जाती है, चली जाये, ये मैखाने कि रौनक;
कमज़र्फो के हाथो में तो सागर न मिलेगा;
 
दुनिया की तलब है, कनाअत ही न करना
कतरे ही से खुश हो, तो समन्दर न मिलेगा।
 
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तुम न आये एक दिन...
 
तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक;
हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक;
 
दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन;
रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक;
 
देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्त;
रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक;
 
गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद;
तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक;
 
क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये;
घर से जो निकले न अपने तुम ज़फ़र दो दिन तलक।
 
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देखा तो था यूं ही...
 
देखा तो था यूं ही किसी ग़फ़लत-शिआर ने;
दीवाना कर दिया दिल-ए-बेइख़्तियार ने;
 
ऐ आरज़ू के धुंधले ख्वाबों जवाब दो;
फिर किसकी याद आई थी मुझको पुकारने;
 
तुमको ख़बर नहीं मगर इक सादालौह को;
बर्बाद कर दिया तेरे दो दिन के प्यार ने;
 
मैं और तुमसे तर्क-ए-मोहब्बत की आरज़ू;
दीवाना कर दिया है ग़म-ए-रोज़गार ने;
 
अब ऐ दिल-ए-तबाह तेरा क्या ख्याल है;
हम तो चले थे काकुल-ए-गेती सँवारने।
 
 
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तेरी हर बात मोहब्बत में...
 
तेरी हर बात मोहब्बत में गंवारा करके;
दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा करके;
 
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे;
वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके;
 
मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे;
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके;
 
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी;
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
 
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कब याद मे तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं;
साद शुक्र की अपनी रातो में अब हिज्र की कोई रात नहीं;
 
मुश्किल है अगर हालत वह, दिल बेच आए, जा दे आए;
दिल वालो कूचा-ए-जाना में, क्या ऐसे भी हालात नहीं;
 
जिस धज से कोई मकतल में गया, वो शान सलामत रहती है;
ये जान तो आनी-जानी है, इस जान की तो कोई बात नहीं;
 
मैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं, या नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ;
आशिक तो किसी का नाम नहीं, कुछ इश्क किसी की जात नहीं;
 
गर बाज़ी इश्क की बाज़ी है, ओ चाहो लगा दो दर कैसा;
गर जीत गए तो क्या कहने, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं।
 
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नींद की ओस से...
 
नींद की ओस से पलकों को भिगोये कैसे;
जागना जिसका मुकद्दर हो वो सोये कैसे;
 
रेत दामन में हो या दश्त में बस रेत ही है;
रेत में फस्ल-ए-तमन्ना कोई बोये कैसे;
 
ये तो अच्छा है कोई पूछने वाला न रहा;
कैसे कुछ लोग मिले थे हमें खोये कैसे;
 
रूह का बोझ तो उठता नहीं दीवाने से;
जिस्म का बोझ मगर देखिये ढोये कैसे;
 
वरना सैलाब बहा ले गया होगा सब कुछ;
आँख की ज़ब्त की ताकीद है रोये कैसे।
 
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कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के;
वो बदल गए अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के;
 
हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा;
मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के;
 
तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है;
वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधल के;
 
कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा;
जो चिराग़ बुझ गए हैं, तेरी अंजुमन में जल के;
 
मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो;
वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के;
 
तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला;
ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले संभल के।
 
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Gazal Hindi Font
सीने में जलन...
 
सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यों है;
इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यों है;
 
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे;
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यों है;
 
तन्हाई की ये कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ो;
ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यों है;
 
हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की;
वो ज़ूद-ए-पशेमान, परेशान-सा क्यों है;
 
क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें;
आईना हमें देख के हैरान-सा क्यों है।
 
 
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ज़रा-सी देर में...
 
ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा;
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा;
न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं;
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा;
 
सफ़ीना हो के हो पत्थर, हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़;
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा;
 
समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं;
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा;
 
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको;
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा।
 
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फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया;
अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया;
 
हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में;
इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया;
 
रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर;
यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया;
 
कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से;
फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया;
 
इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें;
दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया;
 
ख्वाहिश तो थी साजिद मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की;
लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।
 
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भड़का रहे हैं आग...
 
भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम;
ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम;
 
कुछ और बड़ गए अंधेरे तो क्या हुआ;
मायूस तो नहीं हैं तुलु-ए-सहर से हम;
 
ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र तो है;
क्यों देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
 
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके;
कुछ ख़ार कम कर गए गुज़रे जिधर से हम।
 
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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये;
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये;
 
करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला;
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये;
 
मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना;
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये;
 
अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए;
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये;
 
गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा;
गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये;
 
तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़';
इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये।
 
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मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना;
तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना;
 
तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई;
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना;
 
शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो;
अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना;
 
तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते;
पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना;
 
इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का;
तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना;
 
अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी;
तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना।
 
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तेरे कमाल की हद...
 
तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा;
उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा;
 
कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम;
ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा;
 
पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा;
कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा;
 
न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब;
मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।
 
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नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो क्या होगा;
हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा;
 
नई सहर के बहुत लोग मुंतज़िर हैं मगर;
नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा;
 
न रहनुमाओं की मजलिस में ले चलो मुझको;
मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा;
 
ग़म-ए-हयात से बेशक़ है ख़ुदकुशी आसाँ;
मगर जो मौत भी शर्मा गई तो क्या होगा;
 
शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारनेवालों;
ख़िज़ाँ-सिरिश्त बहार आ गई तो क्या होगा;
 
ख़ुशी छीनी है तो ग़म का भी ऐतमाद न कर;
जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा।
 
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तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है;
सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है;
 
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है;
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है;
 
रात हमारे साथ तू जागा करता है;
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है;
 
किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है;
ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है;
 
तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है;
फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है;
 
'कैफ' वो कल का 'कैफ' कहाँ है आज मियाँ;
ये तो कोई वक्त का मारा लगता है।
 
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कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे;
ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे;
 
नन्हें होंठों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब;
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे;
 
ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक;
साँवले हाथों को भी रंग-ए-हिना रौशन करे;
 
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए;
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे;
 
ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चिराग;
तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे।
 
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हर जनम में....
 
हर जनम में उसी की चाहत थे;
हम किसी और की अमानत थे;
 
उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई;
हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे;
 
तेरी चादर में तन समेट लिया;
हम कहाँ के दराज़क़ामत थे;
 
जैसे जंगल में आग लग जाये;
हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे;
 
पास रहकर भी दूर-दूर रहे;
हम नये दौर की मोहब्बत थे;
 
इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया;
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे
 
दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना;
ये दिये रात की ज़रूरत थे।
 
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